कांग्रेस पार्टी में एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर की रणनीति को अपनाया जा रहा है। यह दावा खुद राहुल गांधी ने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बार टिकट वितरण में जिलाध्यक्षों की सिफारिशों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो इंदिरा गांधी के समय में प्रचलित व्यवस्था थी।
जिलाध्यक्षों को मिलेगी अहम जिम्मेदारी
राहुल गांधी ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और महासचिव केसी वेणुगोपाल के साथ बिहार के नवनियुक्त जिलाध्यक्षों की बैठक में यह बड़ा फैसला सुनाया। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के उम्मीदवारों का चयन जिलाध्यक्ष ही करते थे। हालांकि, राजीव गांधी के समय से यह अधिकार प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी प्रभारियों को चला गया। सोनिया गांधी के नेतृत्व में तो यह प्रक्रिया पूरी तरह केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) के हाथों में आ गई।
नए नियम: जिलाध्यक्षों की बढ़ी भूमिका
अब कांग्रेस ने बिहार चुनाव के लिए नया फॉर्मूला तैयार किया है, जिसके तहत:
- जिलाध्यक्षों को CEC बैठकों में शामिल किया जाएगा और उनकी राय को महत्व दिया जाएगा।
- हर महीने जिला स्तर पर बैठकें आयोजित करना अनिवार्य होगा, जिसमें पार्टी के सभी पदाधिकारियों (विधायक, सांसद, एमएलसी आदि) को शामिल होना होगा।
- प्रत्याशियों को जिलाध्यक्षों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेना जरूरी होगा।
- प्रखंड, बूथ और वार्ड कमेटियों का गठन 6 महीने के भीतर करना होगा, नहीं तो जिलाध्यक्ष को हटाया जा सकता है।
बिहार से शुरुआत, फिर पूरे देश में लागू?
अगर बिहार चुनाव में यह नई व्यवस्था सफल रही, तो कांग्रेस इसे अन्य राज्यों में भी लागू कर सकती है। इसका मकसद जमीनी नेताओं को अधिकार देकर पार्टी को मजबूत करना है। साथ ही, चुनावी हार की स्थिति में जिलाध्यक्षों से जवाबदेही भी तय की जाएगी।
इस निर्णय से स्पष्ट है कि कांग्रेस इंदिरा गांधी के “कठोर नेतृत्व” वाले मॉडल की ओर लौट रही है, जिसमें स्थानीय नेताओं को अधिक शक्ति दी जाती थी। अब देखना होगा कि क्या यह रणनीति बिहार में कांग्रेस को नई ऊर्जा दे पाएगी।