नालंदा, बिहार में एक घृणित जातिगत हिंसा की घटना सामने आई है, जहाँ श्री सुखदेव ठाकुर को सिर्फ इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि उन्होंने एक तिलक समारोह में नाई का काम करने से मना कर दिया था। यह घटना एक बार फिर जाति के नाम पर होने वाली हिंसा और भेदभाव की काली छाया को उजागर करती है।
जाति व्यवस्था का क्रूर चेहरा
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जो लोग जाति के नाम पर समाज को बाँटते हैं, क्या वे खुद को इन नीच कर्मों से ऊपर समझते हैं?
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अगर जाति प्रथा इतनी महान है, तो क्यों नहीं इन्हीं “उच्च” कहलाने वालों ने मैला ढोने, नाई का काम करने या मजदूरी करने का प्रावधान बनाया?
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ये वही लोग हैं जो जन्म को श्रेष्ठता का आधार मानते हैं, लेकिन उनके कर्म नीचता की सीमा छूते हैं।
तेजस्वी यादव ने बिहार सरकार से पुचा सवाल मौन कब तक?
बिहार के दोनों उपमुख्यमंत्रियों से सवाल है:
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क्या आप इन अपराधियों की जाति बताने का साहस रखते हैं?
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या फिर आपकी “जाति-जांच” केवल दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों तक ही सीमित है?
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सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा जी, क्या आपके पास इस सवाल का कोई जवाब है?
BJP-NDA से सीधा सवाल
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क्या बिहार में नाई जाति में पैदा होना अपराध है?
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अगर नहीं, तो फिर ऐसे जातिवादी हमलों पर मौन क्यों?