52 साल पुरानी मासस पार्टी का भाकपा माले में विलय,इंडिया गठबंधन को मिलेगी नई ताकत
52 साल पुरानी मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) में विलय हो गया है। इस ऐतिहासिक विलय की घोषणा 9 सितंबर को झारखंड के धनबाद में एक विशाल रैली के दौरान की गई। झारखंड में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि बिहार में 2025 में चुनाव होंगे। यह विलय बिहार और झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है, खासतौर पर धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, गिरिडीह और रामगढ़ जिलों में इसका बड़ा प्रभाव दिखने की उम्मीद है।
वर्तमान में झारखंड के बगोदर से भाकपा माले के विधायक विनोद सिंह हैं, जबकि बिहार में पार्टी के 12 विधायक हैं। बिहार के वरिष्ठ माले नेता केडी यादव का कहना है कि इस विलय से न केवल झारखंड की राजनीति में बदलाव आएगा, बल्कि बिहार के नवादा, नालंदा और गया जिलों में भी इसका असर दिखाई देगा।
वामपंथी एकता को नई मजबूती मिलेगी: केडी यादव
केडी यादव ने इस विलय को वामपंथी एकता के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह घटना वामपंथी आंदोलन को नई दिशा देगी। उन्होंने कहा कि 52 साल पहले विरोधाभासों के बीच मासस का गठन हुआ था, जब एके राय ने 29 अप्रैल 1972 को मार्क्सवादी समन्वय समिति बनाई थी। एके राय ने ट्रेड यूनियन आंदोलनों के माध्यम से झारखंड में मजदूरों और आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ी और तीन बार सांसद बने।
धनबाद में माले का प्रभाव बढ़ रहा है, जहां पहले मासस का दबदबा था। निरसा विधानसभा सीट से मासस के नेता अरूप चटर्जी कई बार विधायक रह चुके हैं। अब वहां बीजेपी की अपर्णा सेन गुप्ता विधायक हैं। गिरिडीह के राजधनवार से माले के राजकुमार यादव भी लगातार चुनाव लड़ते आए हैं। उम्मीद है कि इन सीटों पर माले कड़ी टक्कर देगी।
झारखंड में माले एक दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और इंडिया गठबंधन को मजबूत करने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। मासस के बड़े नेता आनंद महतो और हरधर महतो को माले की पोलित ब्यूरो में शामिल किया गया है, जबकि पांच अन्य नेताओं को सेंट्रल कमेटी में जगह दी गई है।
बिहार में माले का प्रदर्शन लगातार बेहतर हो रहा है। लोकसभा चुनाव में माले ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और दो पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल तीन जीती। विधानसभा चुनाव में भी माले का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर रहा। धीरेन्द्र झा, माले पोलित ब्यूरो के सदस्य, का मानना है कि इस विलय से बिहार और झारखंड में वामपंथी आंदोलन को नई ऊर्जा मिलेगी और दोनों राज्यों में माले का राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा।