आधुनिकता के इस युग में कृषि के क्षेत्र में हो रहे नवाचारी प्रयास किसानों के लिए संपन्नता के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। परंपरागत खेती में निरंतर हो रहे घाटों के कारण किसान धीरे-धीरे इससे दूरी बनाते जा रहे हैं और विकल्प के रूप में व्यवसायिक खेती को अपना रहे हैं।
गया जिले के गुरारू प्रखंड के डब्बुर गांव के किसान विनीत रंजन ने पारंपरिक खेती जैसे धान, गेहूं, मूंग, मक्का छोड़कर केले की खेती आरंभ की है। विविध प्रकार के केले के उत्पादन से किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है। गुरारू के डब्बुर गांव के किसान विनीत रंजन ने तीन एकड़ में केले की खेती प्रारंभ की है। उनका कहना है कि यहां की जलवायु और मृदा केले की उत्तम पैदावार के लिए उपयुक्त है। केले के पौधों में अच्छे फल आ रहे हैं और अनुकूल मौसम में बेहतर पैदावार की संभावना है।
किसान विनीत रंजन ने बताया कि यूट्यूब के माध्यम से केले की बागवानी का तरीका सीखा। उद्यान विभाग ने उन्हें निशुल्क केले के पौधे उपलब्ध कराए और उन्होंने तीन एकड़ में लगभग 3300 पौधे लगाए हैं। केले के पौधों में प्रचुर फल लग रहे हैं और कुछ ही दिनों में इनकी कटाई शुरू हो जाएगी। एक केले के थम से लगभग 30 से 35 किलो फल निकलने की उम्मीद है।
एक एकड़ केले की खेती में 1.30 लाख की लागत आती है। किसान विनीत रंजन ने बताया कि केले की खेती में प्रति एकड़ लगभग 1 लाख 30 हजार की लागत आती है, जबकि मुनाफा पूंजी निकाल कर दुगुना हो जाता है। प्रति एकड़ भूमि में 1200 से अधिक पौधे लगाए जाते हैं और फसल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष का समय लगता है। उन्होंने बताया कि एक पौधे में एक कांधि केला तैयार होता है, जिसका वजन 30-35 किलो होता है। व्यापारी खेत से ही दर्जनों नहीं बल्कि 15 से 20 रुपये प्रति किलो के दर से खरीद कर ले जाते हैं। जी 9 किस्म के केले की मांग पूरे देश में है।
तीन एकड़ में 10 लाख रुपये की बचत की उम्मीद की जा रही है। किसान विनीत कुमार रंजन बताते हैं कि तीन एकड़ की बागवानी से लगभग 10 लाख रुपये की बचत होने की उम्मीद है। जी 9 किस्म के केले का पौधा लगाया है, जिसकी खेती लगभग हर देश में की जाती है। विनीत बताते हैं कि गया जिले का तापमान 45 से 47 डिग्री सेल्सियस होने के बावजूद उन्होंने केले की सफल बागवानी की है। हर सप्ताह केले के एक पौधे को लगभग 6 से 7 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। लगभग 750 क्विंटल फल का उत्पादन होगा।