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एसोसिएशन का दावा- छूट पर मिलने वाली दवाएं कम प्रभावी, कंट्रोलर बोले- ग्राहकों को हो रहा है लाभ

दवा मंडी में छूट के बाद भी अधिकतर लोग उन दुकानों पर नहीं जाते हैं। उनके मन में डर बैठ गया है कि छूट की दवाओं की गुणवत्ता ठीक नहीं है। ड्रग एसोसिएशन का भी दावा है कि जो दवाएं ज्यादा छूट के साथ मिल रही हैं, वे कम असरदार होती हैं। दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि ये दुकानें भी ड्रग कंट्रोल के नियमानुसार लाइसेंस लेकर खोली गई हैं। ये सीधे कंपनियों से थोक दर पर दवा लेकर अपने काउंटर से ग्राहकों को उपलब्ध कराती हैं।

इसका फायदा निश्चित ही ग्राहकों को मिल रहा है। दरअसल, दवा मंडी में छूट के कारण कंपटीशन बढ़ने लगा है। मालूम हो कि शहर के विभिन्न इलाकों में 50 से अधिक दुकानें हैं, जहां छूट का नोटिस लगाया गया है। इन दुकानों पर 15 से 25 फीसदी तक छूट दी जा रही है। दूसरी ओर खासकर जूरन छपरा स्थित दुकानों पर कोई छूट नहीं मिलती। अधिकतर डॉक्टरों की क्लीनिक और नर्सिंग होम में भी मेडिकल स्टोर चल रहे हैं। इन दुकानों पर तो नो-डिस्काउंट का बोर्ड टांग दिया गया है।

केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के नॉर्थ जोन के संयुक्त सचिव संजीव कुमार साहू का कहना है कि रिटेलर को मात्र 18 फीसदी का मार्जिन सरकार की ओर से निर्धारित किया गया है। ऐसे में यदि कोई दुकानदार 15 से 25 फीसदी की छूट देता है तो ग्राहक को सोच-समझकर दवा खरीदनी चाहिए। कोई भी दवा खरीदने के बाद उसका बिल अवश्य लेना चाहिए। उनका दावा है कि छूट पर जो दवा मिल रही है, उसका असर कम होने की अधिक संभावना रहती है। ऐसे में ग्राहक को सोचना है कि वे अपने नजदीक और रजिस्टर्ड दुकान से दवा खरीदें। जहां छूट पर दवा मिलती है, उसमें संभव है कि 4 में 1 स्ट्रिप नकली या जेनेरिक की दवा मिला दी गई हो। इसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

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