मनोज कुमार यादव: संघर्ष से सफलता की प्रेरणादायक कहानी
मनोज कुमार यादव बक्सर जिले के अपने गाँव में सबसे मेधावी छात्र थे, लेकिन उनके जीवन की राह आसान नहीं थी। नए कपड़े या जूते तभी मिल पाते थे जब पुराने पूरी तरह फट जाते या टूट जाते। उनके दादा-दादी मजदूरी करते थे, पिता एक कपड़े की दुकान पर सहायक थे, और घर के सभी पुरुष सदस्य दिनभर काम करते ताकि परिवार का गुजारा चल सके।
एक बातचीत के दौरान मनोज ने बताया, “हमारी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि एक दर्पण खरीदना भी संभव नहीं था। इसलिए हम एक रुपये में उसे एक दिन के लिए किराए पर लेते थे। किताबें भी महीनेभर के लिए नहीं मिल पाती थीं, इसलिए दो दिन में ही पूरी पढ़कर वापस करना पड़ता था। फिर भी, बक्सर जिले का कोई भी प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता हो, मैं उसमें प्रथम आता था।”
आज मनोज पटना में राजस्व अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। दो बच्चों के पिता होने के बावजूद उन्होंने BPSC की परीक्षा पास की और 64वीं BPSC में 556वीं रैंक हासिल कर राजस्व अधिकारी (कानूनगो) बने। परिवार और पढ़ाई के बीच संतुलन के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं, “मेरी पत्नी और बच्चों का पूरा सहयोग रहा। मेरे दोनों बच्चे सात साल से छोटे हैं, लेकिन उनकी समझदारी अद्भुत है, इसीलिए मैं आपसे इतनी शांति से बात कर पा रहा हूँ। मेरी पत्नी ने भी हर कदम पर साथ दिया। मैं बच्चों की देखभाल में ज्यादा योगदान नहीं दे पाया, लेकिन उनके सहयोग के कारण आज घर में खुशहाली है। हालाँकि, मेरा बचपन ऐसा नहीं था।”
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जब उनसे उनके बचपन के बारे में पूछा गया, तो मनोज भावुक हो गए। उन्होंने बताया, “हम टीनशेड के छोटे से कमरे में रहते थे, और 2016 में सरकारी शिक्षक बनने तक वही हमारा घर रहा। मेरे दादा मजदूर थे, पिता कपड़े की दुकान पर काम करते थे और महीने के सिर्फ 3,500 रुपये कमाते थे। हम तीन भाई-बहन और चार चाचाओं के संयुक्त परिवार में रहते थे। घर में हमेशा एकजुटता का भाव था, इसलिए कमी की बजाय सहयोग और स्नेह की यादें ज्यादा हैं।”
मनोज कुमार यादव की कहानी संघर्ष, लगन और सपनों को सच करने की एक मिसाल है, जो यह साबित करती है कि मेहनत और दृढ़ संकल्प से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।